हवाई जहाज राइट्स बंधु ने नहीं अपितु पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने आविष्कार किया


विमान के आविष्कारकपण्डित शिवकर बापूजीतलपदे थे।
राइट्स बंधु को हवाई जहाज के आविष्कार के लिएश्रेय दिया जाता है क्योंकि उन्होंने 17 दिसम्बर1903 हवाई जहाज उड़ाने का प्रदर्शन किया था।किन्तु बहुुत कम लोगों को इस बात की जानकारीहै कि उससे लगभग 8 वर्ष पहले सन् 1895 में संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित शिवकर बापूजी तलपदेने 
मारुतसखा” या
मारुतशक्ति” नामक विमान का सफलतापूर्वक
निर्माण कर लिया था जो कि पूर्णतः वैदिक
तकनीकी पर आधारित था।



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 पुणे केसरी नामक समाचारपत्र के अनुसार श्री तलपदे ने सन् 1895में एक दिन (दुर्भाग्य से से सही 
दिनांक की जानकारी नहीं हैबंबई वर्तमान (मुंबईके चौपाटी समुद्रतट में उपस्थित कई जिज्ञासु 
व्यक्तियों , जिनमें भारतीय अनेक 
न्यायविद्राष्ट्रवादी सर्व साधारण जन के साथ ही महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदाके महाराज सायाजी
राव गायकवाड़ जैसे विशिष्टजन सम्मिलित थेके  समक्ष अपने द्वारा निर्मित “चालकविहीन” विमानमारुतशक्ति” के उड़ान का प्रदर्शन किया था।वहाँ उपस्थित समस्त जन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि टेक ऑफ करने के बाद “मारुतशक्तिआकाश में लगभग1500 फुट की ऊँचाई पर चक्कर लगाने लगा था। कुछ देर आकाश में चक्कर लगाने के पश्चात् वह 
विमान धरती पर गिर पड़ा था।

यहाँ पर यह बताना अनुचित नहीं होगा कि राइटबंधु ने जब पहली बार अपने हवाई जहाज को उड़ाया था तो वह आकाश में मात्र 120 फुट ऊँचाई तक ही जा पाया था जबकि श्री तलपदे का विमान1500 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा था। दुःख कीबात तो यह है कि इस घटना के विषय में विश्व कीसमस्त प्रमुख वैज्ञानिको और वैज्ञानिक 
संस्थाओं संगठनों पूरी पूरी जानकारी होने के 
बावजूद भी आधुनिक हवाई जहाज के प्रथम 
निर्माण का श्रेयराईट बंधुओं को दिया जाना बदस्तूर जारी है और
हमारे देश की सरकार ने कभी भी इस विषय में
आवश्यक संशोधन करनेकरवाने के लिए कहीं
आवाज नहीं उठाई (हम सदा सन्तोषी और
आत्ममुग्ध लोग जो है!) 

कहा तो यह भी जाता है कि संस्कृत के प्रकाण्ड 

पण्डित एवं वैज्ञानिक तलपदे जी की यह सफलताभारत के तत्कालीन ब्रिटिश शासकों को फूटी आँखभी नहीं सुहाई थी और उन्होंने बड़ोदा के महाराज
श्री गायकवाड़जो कि श्री तलपदे के प्रयोगों के
लिए आर्थिक सहायता किया करते थेपर दबाव
डालकर श्री तलपदे के प्रयोगों को अवरोधित कर
दिया था। महाराज गायकवाड़ की सहायता बन्द हो जाने पर अपने प्रयोगों को जारी रखने के लिए श्रीतलपदे एक प्रकार से कर्ज में डूब गए। इसी बीच दुर्भाग्य से उनकी विदुषी पत्नीजो कि 
उनके प्रयोगों में उनकी सहायक होने के साथ ही 
साथ उनकी प्रेरणा भी थींका देहावसान हो गया
 औरअन्ततः सन् 1916 या 1917 में श्री तलपदे का भी स्वर्गवास हो गया। 

बताया जाता है कि श्री तलपदे के स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने कर्ज से

मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से “मारुतशक्ति” के
अवशेष को उसकी तकनीक सहित किसी विदेशी
संस्थान को बेच 
दिया था।

श्री तलपदे का जन्म सन् 1864 में हुआ था।बाल्यकाल से ही उन्हें संस्कृत ग्रंथोंविशेषतः महर्षिभरद्वाज रचित “वैमानिक शास्त्र” (Aeronauti cal Science) में अत्यन्त रुचि
रही थी। वे संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। पश्चिम के एक प्रख्यात भारतविद्
स्टीफन नैप (Stephen-K napp) श्री तलपदे केप्रयोगों को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। एक अन्य विद्वान श्री रत्नाकर महाजन ने श्री 

तलपदे के प्रयोगों पर आधारित एक पुस्तिका भी 
लिखी हैं।श्रीतलपदे का संस्कृत अध्ययन अत्यन्त ही विस्तृत थाऔर उनके विमान सम्बन्धित प्रयोगों के 
आधारनिम्न ग्रंथ थेः


महर्षि भरद्वाज रचित् वृहत् वैमानिक शास्त्र
आचार्य नारायण मुन रचित विमान चन्द्रिका
महर्षि शौनिक रचित विमान यन्त्र
महर्षि गर्ग मुनि रचित यन्त्र कल्प
आचार्य वाचस्पति रचित विमान बिन्दु
महर्षि ढुण्डिराज रचित विमान ज्ञानार्क प्रकाशिका
हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान के अथाह सागर हैं किन्तु

 वे ग्रंथ अब लुप्तप्राय -से हो गए हैं। यदि कुछ रंथ कहीं उपलब्ध भी हैं तो उनका 
किसी प्रकार का उपयोग ही नहीं रह गया है क्योंकि 
हमारी दूषित शिक्षा नीति हमें अपने स्वयं की भाषा 
एवं संस्कृति को हेय तथा पाश्चात्य भाषा एवं संस्कृति को 
श्रेष्ठ समझना ही सिखाती है।
दस्तावेज़ के साथ देखिये कैसे भारत ने विमान

बनाया

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